Main Kalam Tu Kitab

🧑‍🎤: Dharmik

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📂: Thể Loại Khác

⏱: 00:00:00 AM 04/11/2024

धार्मिक
जब मैं जूटा था संसार से
माना मशूर थे तब भी दुनिया से दूर
एक दूजे का गुरूर थे खुद में ही कोई नूर
जलसी अलग सी आँखों से जलग थी
वो दूसरी लड़की ओं के जैसी होके भी अलग थी
मरम थी दरद की मेरी भी तलब थी
तो दिल ने जगा दे दी उसको मरते दम दलखी
बाइट्स मिट गए पर दिल पे है निशान
हर नाइट को फोन पे बातें गवा उसका चान
माना जान तो जान से जादा दिया उसको मान
उसकी याद में ताज ये गाना और मैं शाजहान
मेरी जान, मैं शायर, मैं लिखा शायरी
सचा प्यार, ना कायर, ना जूटी आशिकी
रिष्टा है साम, मैं देखा पहला और आखरी
जीना यादों के सहारे, दिल का इंतहा यही गली का बॉय
लेकिन सफीना मुझसे अब जुदा
हम ते वाकिब, फिर भी न जाने क्यों ते गुमशुदा
है दुआ, दिल से हम दोनों हाथ उठा के मांगे
अगले जनम में धर्म से अलग न कर खुदा
मैं कलम, तू किताब, सर्या करने का बात
जो कहना पाया मुझसे अब वो लिखती आ जजबात
तेरा हाथ मेरे साथ, तू हकीका, तू ही ख्वाप
दिल से मुहबत होती तो न देखा धर्म जाप
मैं कलम, तू किताब, सर्या करने का बात
जो कहना पाया मुझसे अब वो लिखती आ जजबात
सपनों में तुझसे बात, सपनों में मुलाखात
सताता था मैं उसको अब सताती उसकी याद
तू जो रोज गई कलम या तब से रोज बनी
छुपती हाथों को पर दिल तो मद होश कही
है खुश्बू तेरी जब रूप में समाई
इत्री कितना भी लगा लूँ उस बिचारे का कोई दोश नही
दॉलत उससे बड़ी अब तलक मैं खोया नही
मैं नींद में था फिर भी ख़्वाबों में क्यों सोया नही
हाँ उसकी खामोशी ने कह दिया जो तै किया
आँखें भरी मेरी पर मैं उसके आगे रोया नही
वो जोया मैं अर्जन, जिंदगी थी जन्नत
मैं खोया माया जाल में, साथ थी वो हर बक
मैं बादिशा जो दुनिया जीतने को चल पड़ाता
खुद से बेगर हो चुका तो उसके बाहों में थी मननत
आज एक अलग ही नशा, कलम में एलिया बसा
दिल उदास बैठा, तू उसे हसाने की दवा
दर्द देता नहीं सजा, गम को लिखना एक मज़ा
जब नसीब बेवफा, कौन किसे हो कफा
दुआ दी उसने कामियाब होगा तू रैप में
अब उससे बात करना हो तो लिखता रैप मैं
सोना चाहता था वापस तेरी गोद में
पर ख्वाईशों के पन्नों को बहा दिया जहाज में
परिष्टे मिलते जैसे मिलने मुझसे आफिर
तलाश में भटकता रहता मैं मुसाफिर
ये आशिकी जूटी लग रही थी उनको
जो आवारा में को बोले अब वो खुद ही निकले काफिर
मैं कलम दू किताप

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