Aghan Guruvar Mahalakshmi Vrat
🧑🎤: Kanchan
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📂: Thể Loại Khác
⏱: 00:00:00 AM 02/01/2025
जय स्री कृष्णा राधिराधि, आप सभी को मारक्षिष महा के दूसरे गुरुवार की हार्दिक शुप कामनाई।
मारक्षिष महा में आने वाले गुरुवार का महतव बहुत ही खल्दाई माना जाता है।
क्योंकि इस दिन मा महा लक्षमी और बगवान स्री हरी विश्णू की पूजा एक साथ की जाती है।
जो भी सादक पूरे सर्दाभाव से लक्षमी माता और विश्णू जी की पूजा अर्शना करता है, उसकी सारी मनोकामनाई पूर्ण होती है।
तो अब अपने सुनेंगे आज की कथा। पहले सुनेंगे विश्णू बगवान की कहानी, उसकी बाद में मा महा लक्षमी जी की कथा।
तो सभी स्रोताओं से मेरा निवेदन है कि इस कथा को सर्दाभाव से पूरा सुनें।
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मा महा लक्षमी का वास आपके घर में हमेशा बना रहे।
भारत वर्ष के सोराष्टर देश में द्वापर यूप की यह कहानी है।
सोराष्टर में उस समय भदर सर्वा नाम की राजा थे।
वे बड़े ही प्राकर्मी राजा थे।
चार वेद, छह सास्तर, अठारा पुराणों का उन्हें ज्यान था।
उनकी राणी का नाम था सूरत चंद्री का।
राणी दिखने में बहुत ही सुन्दर और सुलक्षिना थी और पतिवर्ता भी थी।
उन दोनों को साथ पुत्तर तथा उसके बाद एक कन्या का वरदान मिला हुआ था।
तो कन्या का नाम श्याम बाला था।
एक बार महालक्षमी जी के मन में विचार आया कि क्यों ना जाकर मैं राजा के राज परसाद में रहूं।
इससे राजा को दुगनी धन्दोलत प्राप्त होगी और वह इस धन्दोलत से अपनी परजा को और अधिक सुक दे पाएगा।
अगर मैं गरीब के घर में रहूंगी और उसे धन्दोलत प्राप्त होगा तो वह तो केवल स्वार्थी की तरहें अपने उपर ही खर्च करेगा।
यह है सोचकर महालक्षमी जी ने बुड़ी ओर्थ का रूप धारन किया और हाथ में लाठी लिये हुए लाठी के सहरे धीरे धीरे राणी के द्वार तक पहुंची।
वरिद ब्रामनी का रूप धारे लक्ष्मी माता ने कहा कि बाली के मेरा नाम कमला है, मेरे पती का नाम भुगनेश है, हम दुआरिका में रहते हैं।
वरिद ब्रामनी का रूप धारन किया और हाथ में लाठी लिये हुए लाठी लक्ष्मी माता ने कहा कि बाली के मेरा नाम भुगनेश है, हम दुआरिका में रहते हैं।
वरिद ब्रामनी का नाम भुगनेश है, हम दुआरिका में लाठी लक्ष्मी माता ने कहा कि बाली के मेरा नाम भुगनेश है, हम दुआरिका में लाठी लक्ष्मी माता ने कहा कि बाली के मेरा नाम भुगनेश है, हम दुआरिका में लाठी लक्ष्मी माता ने कहा कि बाली क
का सुनकार दासी ने उन्हें प्रणाम किया तथा श्री महालक्षमी जी का वक्त किस तरह से किया जाता है और उसकी
विदि क्या है सब उस बुढ़िय कसे पूछ लिया तो बुढ़िय का रूपदारी महलक्षमी जी ने दासी को पूजा की
तथा अधिकार की वजह से वह उन्मत हो गई थी। दासी ने जैसे ही बुढ़िया की सारी बातें जाकर राणी को बताई तो राणी तो सुनकर आग बभूला हो गई। वो राज द्वार पर आकर बुढ़िया रूपी सिरी महालक्षमी जी पर बर्श पड़ी। उसे यह माल�
नहीं था कि सिरी महालक्षमी माता बुढ़िया का रूप धारण करके द्वार पर आई है। परन्तु राणी का इस तदा रूपा बर्दाव तदा अपना अनादा देखकर माता ने वहां पर रूपना उचित नहीं समझा। वे वहां से चुपचाप चल पड़ी। रहा में
तो उस पर दया आगया। उन होने शामबाला को सिरी महालक्षमी जी वर्थ के बारे में बताया। उस दिन अगहन महा का पहला गुरुवार था। तो शामबाला ने परम सर्दा से सिरी महालक्षमी जी का वर्थ रखा। जिसके फलसव
रूप और इस तरह से शामबाला ने पूरे मारक्षिष महा में अगर गुरुवार के वर्त बड़े ही सरदाबाव से रखे
तो उसे उसका फल बहुत ही जल्द प्राप्त हुआ वर्त के परभाव से शामबाला का विवहा राजा सितेश्वर के सुखूतर माला धर से हो गया वह है धन धोलत एशुरिय वेभव से माला माल हो गया पती के साथ ससुराल में आनंच से रहनी लगी इधर सिरी महलक्षमी जी
यहां तक की खाने के भी लाले पड़ गई तो ऐसी हालत में एक दिन राणी ने राजा से निवेदन किया कि हमारी तो बहुत ही बुरी हालत हो गई है
हे राजन हमारा दामाद इतना बड़ा राज्य का राजा है धनवान है एशुरिय साली है क्यों ना उसके पास जाया जाए और उसे अपना हाल बताएं तो जरूर हमारी मदद करेगा
तो राजा को यह बात बिल्कुल अच्छी नहीं लगी सोचने लगे कि क्या बेटी के घर जाना उचित होगा फिर राणी के जित करने पर राजा जाने के लिए तैयार हो गए जैसे ही राजा भदर सर्वा अपने दामाद के पास गए तो राज्य में पहुंच कर एक ताला�
प्लाब से पानी लेने वाली आधी जाती दास्यों ने उन्हें देखा उन्होंने बड़ी विनमर्ता से पूछा कि तुम कौन हो तो राजा ने उसे सब कुछ बता दी कि आपके यहां जो राणी है शाम बाला मैं उसका पिता हूँ तो दास्यों को जब पता चला कि राणी �
शामबाला के पिता आए है तो वो दोड़ते हुए राणी के
पास गई और जाकर सारी बात बता और कहा कि तुम्हारे
पिताजी आए है उनकी तो हालत बहुत ही खराब है देखने
में बिल्कुल दीन गरीब लगते हैं तो शामबाला को यह
सुनकर बहुत ही दुख हुआ और उन्होंने अपनी दासी की हातों राजपरिधान बेज कर कहा की मेरे पिताजी से कहे देना कि इन कपड़ों को पहन ले
तो शामबाला के पिताजी तालाब पर श्नान करके राजबरिधान को पहन कर अपनी बेटी की महल पर आई,
तो वहाँ पर उनका बड़े ही ठाट से स्वागत किया गया, आदसतकार किया खान पान करवया,
तो रात भर राजा अपनी बेटी सामबाला के घर रहे, सुबह होते ही राजा ने अपनी बेटी से कहा, बेटी मैं अपने घर जाना चाहता हूँ।
लोटने लगे तो श्यामबाला ने सोनी की मोहरों से भरा हुआ कड़ा दिया राजा भदर शर्वा जब वापिस लोटे तो उन्हें
देखकर रानी सूरत चंद्री का बहुत ही प्रशंठ हुई तो राजाने जो श्याम बाला ने गढ़ा दिया था वह सूरत चंद्री का
को दे दिया तो राणी ने बड़ी ही उतावली होकर उस गड़े का मूँ खोला और अंदर देखा उस गड़े के अंदर धन के बजाए कोईले भरे हुए मिले
दे तो यह सब तो महा लक्ष्मी जी के परकोप से हुआ था लेकिन सूरत चंद्रिका को इस बात का बिल्कुल भी पता नहीं था उसने तो सोचा कि हमारी बेड़ी ने हमारी गरीबी का मजाक बनाया है तो यह जानकर उसे बहुती दुख हुआ और राजा राणी बूखे ब्य
के पास जाओंगी तो यह सोचकर वह अपनी बेड़ी के घर चल पड़ी जिस दिन राणी गई उस दिन अगन महा का अंतिम गुरुवार था श्याम बाला ने श्री महा लक्ष्मी जी का वर्थ किया था उसकी महा सुवे सवेरे ही उसके महल पर पहुंच गई थी तो श्याम �
बाला ने अपनी माता से भी वर्थ करवाया पूजा पाठ की और वर्थ कथा सुने बाद में वर्थ का पारण करके राणी अपने महल पर लोट आई श्री महा लक्ष्मी जी का वर्थ करने से राणी को अपना खोया हुआ राज पार्ट धन दूलत एसवरे फिर से प्राप्
तो शाम बाला को घर आया हुआ देखकर उसकी मा सूरत संद्रिका को पुरानी बात याद आ गए कि यही शाम बाला है जिसने अपने पिता को कोईलों से भर कर घड़ा दिया था धन देना तो दूर की बात थी खाने के लिए अनास तक नहीं दिया इसने हमारी गरीबी का मज
बनाया था तो उसे देखकर रानी सूरत संद्रिका बिल्कुल भी खुश नहीं हुई ना उसे कोई बात चीज की किसी भी त्रहें का शाम बाला का आदर सत्कार नहीं किया गया
बलकि उसका अनादर किया
पर शामबाला ने उस बात का
बिलकुल भी बूरा नहीं माना
उसने अपने घर लोडते समे
अपने पिता के घर से
थोड़ा सा नमक ले लिया
और वहे अपने ससुराल लोड आई
जैसे ही वो अपने ससुराल आई
तो उसके पती ने पुछा
माई के जाकर आई हो
क्या लेकर आई
तो श्यामबाला ने कहा
कि मैं तो वहां का सार लाई हूं
तो उसके पती ने पुछा
कि इसका मतलब क्या हुआ
तो श्यामबाला ने कहा
कि थोड़ा दीर्ज रखो
सब कुछ मालूम हो जाएगा
उस देन शाम बाला ने सारा भोजन पिना नमक डाले ही बनाया
भोजन तैयार हो गया तो अपने पती से कहा कि आओ स्वामी भोजन कर लो
जैसे ही उसका पती भोजन करने के लिए बैठा
और पहला कोर मूं में लिया तो उसके अंदर तो बिल्कुल भी नमक नहीं था
सारा खाना बे स्वाद लग रहा था
तो शाम बाला के पती ने कहा कि ये सब क्या है आज तो भोजन में बिल्कुल भी स्वाद नहीं आ रहा है
तो श्यामबाला ने थाली में से नमक डाला
और इसे सारा भोजन स्वाधिष्ट लगने लगा
तब श्यामबाला ने अपने पती से कहा
कि ये वही सार है जो मैं माईके से लेकर आई ही
तो उसके पती को सारी बात समझ में आ गई
और वहें हंसते हुए बोला कि तुम बिल्कुल सही कह रही हो
कि दोनों हंसी मजाग करते हुए भोजन करने लगे
कहा गया है कि इस तरहें से
जो कोई सरदाबाव से सिरी महालक्ष्मी जी की पूजा करता है
तो उसे माता लक्ष्मिन जी की किर्पा अवश्य प्राप्त होती है
सुप, संपते, शांती प्राप्त होती है
सारी मनो कामनाई पुर्ण होती है
परन्तो यहे सब प्राप्त होने पर
मा लक्ष्मिन जी की पूजा को कभे भी पुर्णना नहीं चाहिए
हर गुरुवार को वर्थ-पाट अबश्य करना चाहिए, इससे सिरी महालक्षमी जी की महिमा अपने भक्तों पर बनी रहती हैं, और वह समय पर अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं, बोलो महालक्षमी जी की जे हो, तो ये थी अगन गुरुवार को सुनी जाने व
बोक्स में विश्णु जी का जयकारा अवस्य लगाना बोलो विश्णु भगवान की जय हो प्राचीन समय की बात है एक नगर में एक बड़ा व्यापारी रहता था वह जहाजों में माल अदवा कर दूसरे देशों में भेजा करता था वह जिस परकार अधिक धन कमाता उसी प
समाना किया करती थी एक बार वह शेष व्यापारी दूसरे देश को व्यापार करने गया हुआ था तो पीछे से
गुरूदेव इन साधु वेश में उसकी पत्णी से विश्व तो व्यापारी की पत्णी ने गुरुदेव से कहा कि शादु महाराज मैं
कुछ दान-पुन्य से तंग आ गई हूं। आपको ऐसा उपाय बताएं जिससे हमारा सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकती। मैं इस तरह धन लुटता हुआ नहीं देख सकती। तो गुरुदेव ने कहा कि हे देवी तुम बड़ी विचीतर हो। धन और संतान से
कोई दुखी होता है बला। अगर तुम्हारे पास अधिक धन है तो सुप कार्यों में लगाओ। कुमारी कन्याओं का विवाह करवाओ। विदाल्य और बाग बगीचों का निर्मान करवाओ। ऐसे पुन्य कार्य करने से तुम्हारा लोग और परलोग सार्थक हो सकता है�
परन्तु सादु की इस बातों का वियापारी की पत्नी पर कोई भी असर नहीं हुआ। वह तो बिल्कुल भी खुश नहीं हुई। उसने कहा कि सादु माराज मुझसे ऐसा धन नहीं चाहिए जिसे मैं हमेशा दान करती रहूं। तो गुरुदेव बोले कि यदि तुम्हार
दान करना और वियापारी से हजामत बनवाने को कहना, बोजन में मास मदीरा खाना, कपड़े अपनी घर पर रोजाना धोना और गुरुवार के दिन अवश्य धोना, ऐसा करने से तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहे कर गुरुदेव तो वहां से अंतर ध्
गई। वियापारी की पर्त्मी ने जैसे गुरुदेव ने कहा था, उसके अनुसार साथ गुरुवार तक वैसा ही करने का निष्ट्य किया और जैसा सादु बता कर गया था, वैसा ही करने लगे। केवल तीन गुरुवार बीते थे कि उनकी सारे धन संपती नष्ट हो गई
गई और वह पर लोग से धार गई जब व्यापारी वापिस आया तो उसने देखा कि उसका सब कुछ नष्ट हो चुका है और बेटी
अकेली ही बेटी रो रही थी तो व्यापारी ने अपनी बेटी को दिलाशा दी और उसे लेकर दूसरे नगर में जाकर बस गया
वहां वह जंगल से लकड़ी काट कर लाता और सहर में बेचता इस तरह है वह अपना जीवन व्यापन करनी लगा एक दिन
व्यापारी की बेटी ने अपने पिताजी से कहा कि पिताजी मुझे तो दही खाना है लेकिन व्यापारी के पास तो दही
खरीदने के लिए पैसे नहीं थे लेकिन वह अपनी बेटी को कहे कर गया कि बेटा मैं तुम्हारे लिए दही देकर
आऊंगा ऐसा कहे कर वह जंगल में लकड़ी काटने चला गया वहां जाकर एक पेड़ के नीचे बैठकर अपनी पूर्व दिशा
विचार करके रोनी लगा उस दिन गुरुवार था तभी वहां पर गुरुदेव साधु के रूप में प्रकट हो गई और सेट
के पास आए और बोले कि हे मनुष्य तुम इस जंगल में किस चिंता में बैठा है तब व्यापारी बोला कि हे माराज आप
सब कुछ जानने वाले हैं इतना कहे कर व्यापारी ने अपनी सारी कहानी साधु माराज को सुनाई और रो पड़ा तो
गुरुदेव बोले कि देखो बेटा तुम्हारी बतनी ने गुरुदेव का अपमान किया था इसी कारण तुम्हारा यह हाल हुआ है लेकिन
अब तुम्हें किसी प्रकार का भ्याय नहीं है तुम चिंता मत करो तुम गुरुवार के दिन प्रहस्पति देव का वर्ग करो तो
पैसे के चने और गुड़ को लेकर जल के लोटे में शकर डालकर वह अमृत और परसाद अपने परिवार और सदस्यों कथा-कथा
लकड़ियां बेचने के लिए आज सहर में जाओगे तो तुम्हें लकड़ियों के दाम हमेशा से चोगों ने मिलेंगे जिससे
तुम्हारे सारे कार्य सिद्ध हो जाएंगे तो यह सुनकर लकड़ हारा बना व्यापारी बहुत ही खुश हुआ जल्दी-जल्दी
लकड़ियां काटी और सहर में बेचने के लिए चल पड़ा उसकी लकड़ियां अच्छे दाम में बिट गई जिसने उसने अपनी
पुत्री के लिए दही लिया और गुरुवार की कथा हेतु चना और घुड़ लेकर कथा की और परसाद बांड कर स्वयं भी परसाद
खाया उसी दिन से उसके सभी कठिनाईयां दूर होने लगे परन्तु जैसे ही अगला गुरुवार आया तो वह तो वर्थ करना
थे महल में भोजन करने के लिए गया लेकिन व्यापारी वह उसकी पुत्री थोड़ा विलंग से पहुंचे अते उन दोनों
को राजा ने महल में ले जाकर भोजन करवाया जब वह बाप बेटी दोनों भोजन कर रहे थे उसी समय राणी वहां पर आई
यह आने ने देखा कि उसका हार भोंकी पर नहीं है वहां से गायब हो गया है तो राणी को व्यापारी और उसकी
बेटी पर सक्ष हुआ और उसका हार उन दोनों नहीं छुराया है यह कहे कर राजा की आज्या से उन दोनों को कारवाज
कोठरी में कैद कर दिया। कैद में पढ़कर दोनों अत्यंत दुखी हुए। वहाँ उन्होंने बृहस्पति देवता का स्मारन किया। तो गुरु बृहस्पति देव वहाँ पर परकट होकर व्यापारी को उसकी भूल का आभास कराया। और उन्हें सलाह दी कि गुरुवार
तो जैसे ही गुरुवार का दिन आया तो कैद खाने के दुआर पर उन्हें दो पैसे पड़े मिले। और उसी समय सड़क की ओर से एक महिला जा रही थी। तो व्यापारी ने उसे बुला कर कहा कि आप मेरे लिए गुड और चेना ला दो। तो व्यापारी की बात सुनकर व
तो व्यापारी ने उसे बुला कर कहा कि बहन मुझे गुरुवार की कथा करनी है। तुम मुझे दो पैसे का गुड चेना ला दो। तो गुरुदेव का नाम सुनकर वहे स्त्री बोली की भाई मैं तुमें अभी गुड चेना ला कर देती। उसकी आंकों से आंसू बहे रह
ले तुम्हारा काम करो। उसके बाद अपने पुत्र के लिए कफ़न लाओंगे। तो वहे स्त्री रोती हुई बाजार से व्यापारी के लिए गुड और चेना लेकर आये। और फिर स्वयं भी गुरुदेव की कथा वहाँ पर सर्दा बुपक सुने। कथा समाप्त होने �
पर वहे स्त्री कफ़न लेकर अपने घर गई। तो घर के लोग उसके पुत्र की लास को राम नाम सत्य है कहते हुए समसान की ओर ले जाने की तैयारी कर रहे थे। तो वहे बोले कि मुझे अपने लड़के का मुख देख लेने तो। तो जैसे ही उसने अपने बेटे का मु
देखा तो उसके मुँ में गुरुवार का परसाद और चर्णामर्थ डाल दिया। परसाद और चर्णामर्थ के भरवाव से वहे तो पुने जीवित हो गया। तो वहाँ पर इकट्ठे हुए गाम के लोग सारे आश्रे सकित हो गए। और सोचने लगे कि ये चमतकार कैसे ह
हुआ। तो उसने कहा कि यह तो सब कुछ गुरुदेव की वज़े से हुआ है। और जो पहली स्त्री थी जिसने गुरुदेव का परसाद लाने के लिए व्यापारी को मना किया था। जब वहे अपने पुत्र विवाहेतु पुत्र वदू के गहने लेकर लोटी थी। और �
जैसे ही उसका पुत्र गोडी पर बैठ कर निकला था वैसे ही गोडी ने ऐसी उच्छाल मारी कि उसका पुत्र गोडी से गिर गया और मिठ्यु को प्राक्थ हो गया। तो यह देख कर वहे स्त्री रो रोकर गुरुदेव से समा याचना कर रही थी। तो उसी समय उसकी या
अनाधर करने के कारण हुआ है तो मैं वापिस जाकर मेरे भक्त व्यापारी से छमा मांगकर कथा सुनूं तभी तुम्हारी
मनोकामना पूर्ण होगी तो सादु के कहे अनुसार वह स्थ्री जल्दी से जेल में गई और वहां जाकर व्यापारी से मापी
और गथा सुनी गथा के उपरांथ वह परसाद और चर्णामर्थ लेकर वापिस घर आ गए और घर आकर उसने चर्णामर्थ अपने मृत पुत्र के मुख में जैसे ही रखा तो चर्णामर्थ के परभाव से उसका पुत्र जिवित हो गया
तो वह बरहस्पति देवता का धन्यवाद करने लगी और संकल्प लिया कि अब से मैं भी गुरुवार के वर्थ किया करूंगी और उसी रात",
पूर ब्रहस्पती देव राजा के स्वपन में आये और राजा से बोले कि हे राजन जिस व्यापारी और उसकी पुत्री को तुने जेल में बंद कर रखा है वो बिल्कुल निर्दोस है तुम्हारी राणी का हार वहीं कुंटी पर डंगा है तो सुबह हुई तो राजा ने द
और उसकी पुत्री का विवाहा उस कुल में करवा कर खूब सारा दान दहेज हीरे ज्वहरात दिये इस तरहें गुरुवार का वर्थ करने से व्यापारी को अपना खोया हुआ मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो बोलो वि�
गुरुवार की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
मान समान और धन दोलत पुने प्राप्त हो गए बोलो ब्रहस्पती देवता की जेहो
आप अपने सुनेंगे लप्सी और तप्सी की कहाने
इस कहाने को हर वर्थ कथा के बाद में जरूर सुनना चाहिए
इस कथा को सुने विना हमें हमारे वर्थ और पूजा पाठ का पुन्य फल नहीं मिलता है
एक लप्सी था एक तप्सी था
तपसी हमेशा भगवान की तपस्या में लिन रहता था
लपसी रोजाना सवा सेर की लापसी बनाकर
भगवान को भूग लगाकर पोजन कर लिया करता था
एक दिन किसी बात को लेकर
उन दोनों में कहा सुनी हो गई
और दोनों जोर जोर से लड़नी लगे
लगे तब सर कहनी लगा कि मैं तो रोजाना भगवान की तपस्या करता हूं इसीलिए मैं बड़ा हूं तो लब्जी
कहनी लगा कि मैं रोजाना भगवान को सवाशिर की लाबगाता हूं इसीलिए मैं बड़ा हूं इस तरह कहते हुए वह दोनों
जोर जोर से लड़ने लगे
तभी वहां से नारजी गुजर रहे थे
दोनों को लड़ता हुआ देखकर वहां आ गए
और उनसे पूछने लगे
कि तुम दोनों लड़ क्यों रही हो
तो तपसी ने खुद को बड़ा होनी का कारण बताया
और लपसी ने अपनी बड़े होनी का कारण बताया
और कहने लगे कि अब आप ही हमारा फैंसला कर दो
तो नारजी कहने लगे कि मैं तुम्हारा फैंसला तो कर दूँगा
लेकिन कल आऊंगा तुम दोनों तयार रहेना
दूसरे दिन लपसी और तपसी नहा दोकर अपनी रोजाना की बक्ती करने आई
तो नारची वहाँ पर छुपकर बैठे थे और उन्होंने सोने की एक एक अंगुठी उन दोनों के आगे रख दी
तपसी की नजर जब अंगुठी पर पड़ी तो उसने चुप चाप अंगुठी को उठाया और अपनी पैर के नीचे दबा ली
लपसी की नजर उस अंगूठी पर पड़ी
लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया
उसने रोजाना की तरहें लापसी बनाई
और वगवान को भोग लगाया
फिर स्व्यम बोजन करनी लगा
तो नारत जी उन दोनों की सामने आ गई
तो देखते ही दोनों कहनी लगे
कि अब बताओ हम मेंसे कोण बड़ा है
तो नारत जी कहने लगे
कि लपसी ही बड़ा है
तो यह सुनकर तपसी को बड़ा ही अस्चरिय हुआ
और वो कहने लगा
कि मैं कितनी कठिन तपस्या करता हूँ
फिर भी आप कहे रहे हैं
कि लपसी बड़ा है
तो नारजी ने कहा कि तुम अपने स्थान से खड़े हो जाओ
तो वो खड़ा हुआ तो उसकी पैर के नीचे अंगुठी दिखाई पड़ी
तो नारजी तपसी से कहने लगा कि तपस्या करने के बाद भी तुम्हारी चोरी करने की आदत नहीं गई है
इसलिए लपसी बड़ा है क्योंकि मैंने ही तुम दोनों के आगे सोने की एक-एक अंगुठी रखी थी
तो तुमने तो देखते ही अंगुठी को उठाया और अपने पैर के नीचे दबा लिया
लपसी ने अंगुठी को देख कर भी अंदेखा कर दिया
इसका अपनी रोजाना की वक्ति में द्यान था
इसने लापसी बनाई और भगवान को भोग लगया
इसलिए लापसी ही बड़ा हुआ
और तुम्हें तुम्हारे इतनी कठिन तपस्या का कोई फल नहीं मिलेगा
तो यह सुनकर तपसी को अपनी किये पर बड़ा ही पस्तावा हुआ
और सर्मिंदा होकर नारजी से माफी माँगने लगा
कहने लगा कि महराज मुझसे गल्दी हो गई
आज से मैं कभी भी चोरी नहीं करूँगा
तो मुझे बताओ कि मुझे मेरी तपस्या का फल कैसे मिलेगा
मैंने तपस्या बड़ी ही सर्दा भाव से की हैं
तो तपसी की बात सुनकर नारजी कहने लगे
कि यदि घर पर सारी रोटी बनाकर
गाई और कुटे की रोटी नहीं बनाएगा
तो वह फल तुझे ही मिलेगा
अगर कोई दिये से दिया जलाएगा
तो उसका फल भी तुम्हें ही मिलेगा
कोई ब्राह्मन को बोजन करवाकर
उसे दक्षिना नहीं देगा
तो उसका फल भी तुझे ही मिलेगा
अगर कोई बहन सुआसनी को
तीवल सूट हम भैंड सब रूप देते हैं
उसके साथ अगर उपाय नहीं देंगे
तो उसका फ़ल भी तुझे ही मिलेगा
और वर्थ कथा में
अगर कोई सारी कहानी सुन ले
लेकिन तुम्हारी कहानी ना सुने
तो उस वर्थ का फ़ल भी तुझे ही मिलेगा
तो यह सुनकर तपसी बहुत ही खुश हुआ और उसके बाद कभी भी चोरी ना करनी का परन लिया
कहा जाता है कि उसी दिन से हर वर्थ तथा के बाद में लपसी तपसी की कहानी कही और सुनी जाधी है
कहानी समाप्त होते ही बोलना चाहिए
कि लपसी का फल लपसी को मिले
तपसी का फल तपसी को मिले
हमारी कहानी का, हमारी वर्त का
और हमारी पुजापाट का फल हमें मिले
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Veshak Mah Mein Lakadhare Ki Kahani
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Laila O Laila (From "Qurbani")
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🧑: Kanchan, Amit Kumar
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