Utpanna Ekadashi Vrat Katha 2

🧑‍🎤: Kanchan

🎧: 0

📂: Thể Loại Khác

⏱: 00:00:00 AM 02/01/2025

जय सरी कृष्णा राधिराधि
उत्पना एकादसी का वर्त आ रहा है
तो आज अपने सुनेंगे उत्पना एकादसी का महातम्य
मारक्षिश महा के कृष्ण पक्स में आने वाली एकादसी को उत्पना एकादसी के नाम से जाना जाता है
मन्यता है कि इसी दिन से एकादसी के वर्थ सुरू किये जाते हैं
तो जो भी विश्णु भक्त एकादसी का वर्थ रखना चाहते हैं
वो इस एकादसी के महातम्य को एक बर अवश्य सुने
तो पूरे स्यादा भाव से कहे लक्ष्मी पती नारायन की जे हो
आप सभी विश्णु भक्त कमेंट बोक्स में विश्णु जी का जेकारा जरूर लगाएं
अगर मीरा भक्ती चैनल पर नाई हैं तो इसे सब्सक्राइब करके वीडियो को ज्यादा सी ज्यादा शेयर करें
सिरी हरी आपकी सारी मनो कामनाईं पुरण करें
एक समय की बात है सब धर्मों के ग्याता वेद और सास्त्रों के अर्थ ज्यान में पारंग्दत
सब के हिर्द्य में रमन करने वाली सिरीमन नारायन की तत्तव को जानने वाली
तथा बगवत परायन बग शिरोमनी परलाज जी जब सुख पुरुख बैठे हुए थे
तो उस समय उनके समिप सव धर्म का पालन करने वाले महरसी जन कुछ पूछने की वहाँ आये
महरशिओं ने कहा परलाज आपको प्रणाम है थे, हम आज आपसे कुछ पूछने की इच्छा रखती है तो उत्तु
ने कहा कि निशंकोष कही तो महर्षियों ने कहा कि परलाद जी आप ऐसा कोई साधन बताइए जिसे ज्ञान ध्यान और
इंद्रिय निग्रह के बिना ही अनायास भगवान नारायण का परंपर्थ प्राक्त हो जाए तो रिशियों के ऐसा पूछने पर
संपूर्ण लोकों के हित के लिए उद्धत रहने वाले विश्णु भक्त महाभाग परलाद जी ने इस प्रकार कहा कि महर्षियों
जो अठारा पुराणों का सार सेंपी सारतर तत्व है जिसे कार्तिके जी के पूछने पर भगवान संकर ने उन्हें बताया था
मैं उसका वर्णन करता हूं ध्यान पूर्वक सुनना कि जो कली काल में एकादसी का वर्थ रात्री जागरण पूर्वक करती है
एहम वैश्णव शास्त्र का पाठ करता है उसके कोटी-कोटी जन्मों के किए हुए चार प्रकार के बाप नष्ट हो जाते हैं जो
एकादसी के दिन वैश्णव शास्त्र का उपदेश करता है उसे मेरा भगत जानना चाहिए जिसे एकादसी वर्थ को करने में
कोई संस्या नहीं होता तथा रात्री जागरण में नित्रा नहीं आती है जो उत्साह पूर्वक नाशता और गाता है वहीं
मेरा विशेष भगत है मैं उसे उत्तम ज्ञान देता हूं और भगवान विश्णु मोक्ष पर दान करते हैं अत्या मेरे भगत
को विशेष रूप से एकादसी वर्थ एमवर्थ के दिन रात्री में जागरण करना चाहिए जो कोई भगवान विश्णु से वैर रखती
है उन्हें पखंडी जानना चाहिए और जो एकादसी की रात्री को जागरण भजन करते हुए रात बिदाते हैं उन्हें आदे
की मेश मात्र में अगनी डोम तथा अति रात्र यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है जो रात्री जागरण में बारंबार भगवान
विष्णु के मुखार बीत का दर्शन करते हैं उनको भी वही फल प्राप्त होता है जो मनोश्य द्वादसी तिथि को एक
बार पारण एम भगवान विष्णु के आगे जागरण करते हैं वे यमराज के पास से मुक्त हो जाते हैं जो द्वादसी को भगवान
का समर्ण करते हुए रात्रिय जागरण करें और गीता शास्थर से मनोविनोध करते हैं वे भी यमराज के बंधन से
मुक्त हो जाते हैं जो प्राण त्याख हो जाने पर भी द्वादसी का जागरण नहीं छोड़ते वे धन्य और खुण्य आत्मा होती हैं
जिनके वंसके लोग एकादसी की रात में जागरन करते हैं वे ही धन्य हैं
जिन्होंने एकादसी को जागरन किया है उन्होंने यग्य, दान, गया, श्राद और नित्या प्रयाग श्नान कर लिया है
ऐसे भक्तों को सन्यास्यों के सन्यास का पुन्य फल भी मिल जाता है
और उनके दुआरा इष्टापूर्थ कर्मों का भी भली भांती पालन हो जाता है
शडानन भगवान विश्णु के भक्त जागरन सहित एकादसी का वर्थ करते हैं
इसी लिए वे मुझे सदाही विशेष पिरे होते हैं
जिसने वर्धनी एकादसी की रात में जागरन किया है
उसने पुने प्राप्त होने वाले श्रीर को स्वयम ही बसम कर दिया है
जिसने त्रीस परसा एकादसी को रात्री में जागरन किया है
वह भगवान विश्णु के सब रूप में लीन हो जाता है
जिसने हरी परबोधनी एकादसी की रात में जागरन किया है
उसके स्तुल सुक्षम सभी पाप नष्ट हो जाते हैं
जो द्वादसी की रात में जागरन तथा ताल स्वर के साथ संगीत का आयोजन करता है
उसे महान पुन्य की प्राप्ती होती है
जो एकादसी के दिन रिश्यों द्वारा बनाए हुए दिव्य स्त्रोतों से
रिगवेद, यजुरवेद, सामवेद के वेशनों मंत्रों से
संस्कृत और प्राखरत के अन्य स्त्रोतों से
एवं गीत, वद्य, आदि के द्वारा बगवान श्री हर विश्णू को संतुष्ट करता है
उसे बगवान विश्णू भी परम आनंद परदान करते हैं
जो एकादसी की रात में बगवान विश्णू की आगे वेशनु भक्तों किसमें
गीता और विश्णू सहस्तर नाम का पाट करता है
वह उस परम धाम में जाता है
जहां साक्षात बगवान नारायन राजमान है
पुन्य में भगवर तथा स्कंद पुराण बगवान विश्णू को अत्यंत पिरिय है
मतूरा और वजर में बगवान विश्णू के पाल सरीतर का वर्णन किया गया है
उसे जो एका दसी की राथ में बगवान केसव का पूजन करकी बढ़ता है
उसका पुन्य कितना है यह मैं भी नहीं जानता
कदाचित बगवान विश्णू ही जानते हूँ
हे पुत्तर, बगवान के स्मीप, इद, नर्त्य तथा स्त्रोत पाठ आधी से जो फल प्राप्त होता है, वही कली काल में सिरी हरी के स्मीप जागरन करते समये विश्णु सहस्तर नाम, गीता तथा सिर्मत भागवत का पाठ करने से सहस्तर गुना होकर मिलता है।
जो सिरी हरी के स्मीप जागरन करते समये रात में दिपक जलाता है, उसका पुन्निय सो कल्पों में भी नष्ट नहीं होता।
जो वर्थ के साथ रात्री जागरण में मंजरी सहित तुलसी दल से भक्ति भूर्वक सिरी हरी की पूजा करता है
उसका पुने इस संसार में जनम नहीं होता
स्नान, चंदन, लेब, दूप, दीप, निवेद और तामपुत
यह सब जागरण काल में भगवान मिश्णों को समर्पित किया जाए
तो ऐसा करने से अक्षिय पुन्य फलों की प्राप्ती होती है
हे कार्ति के जो भग्त मेरा ध्यान करना चाहता है
वह है एकादशी की रात्री में सिरी हरी केस में भगती पूर्वक जागरण करें
एकादशी के दिन जो लोग जागरण करते हैं
उनके सरीर में इनदर आधी देवता आकर इस्टित हो जाते हैं
जो जागरण काल में महाभारत का पाठ करते हैं
वे उस परमधाम में जाते हैं जहां सन्यासी महत्मा जाया करते हैं
जो उस समय सिरी रामसंदर जी का श्रीत्र दस कंट वद बढ़ते हैं वे योग वेताओं की गति को प्राप्त करते हैं
जिन्होंने सिरी हरी के समीप जागरण किया है उन्होंने च्यार वेदों का स्वाध्याय देवताओं का पूज़े यग्यों का अनुष्ठान तथा सब दिर्थों में श्नान कर लिया
है श्री कृषिण से बढ़कर कोई देवता नहीं और एकादसी वर्थ के स्मान कोई दूसरा वर्थ नहीं है जहां भागवत
सास्त्र हैं भगवान विष्णु के लिए जहां जागरण किया जाता है और जहां सालि ग्रामशिला स्थित होती है वहां सक्षात
भगवान विष्णु स्वयं उपस्थित होते हैं तो अब मैं आपको एकादसी वर्थ की विधि बतलाता हूं दसमी की रात्री को
कुरण ब्रह्मचार्य का पालन करें भोग विलास से दूर रहें और एकादसी के दिन सुबह लकड़ी की दांतुन करें इस दिन पेश्ट
का परियोग नहीं करना चाहिए नीम्बू जामून या आम के पत्ते लेकर चबा लें और अंगुली से अपनी गले को शुद्ध कर लें
वरक्षें इस दिन पत्ता दोड़ना वर्जित होता है अत्या स्वयं गिरे हुए पत्तों का सेवन करना चाहिए यदि यह संभव ना हो तो बाने से बारा बुले करने चाहिए उसके बाद में स्नान आदि से निवर्थ होकर मंदिर में जाकर गीता का पाठ करें या फिर प�
एकादसी के दिन गीता जी का पाठ अवश्य करना चाहिए और परभु के सामने इस परकार संकल्प करना चाहिए कि आज मैं चोर, पाखंडी और दुराचारी मनुश्यों से बात नहीं करूँगा और ना ही किसी का दिल लुखाऊंगा गव और ब्रह्मन को खल आहाद एमं �
अन आदि देकर परशन करूँगा रात्री को जांगरन करके किर्तन करूँगा ओम नमुं भगवते वाश्यु देवार आपके इस मंतर का जाप करूँगा राम, कृषन, नरायन इतियादी, विश्नो सहस्तर नाम को कंट का बूशन बनाऊँगा अतय इन नामों का ही जाप क
करता रहूँगा इस परकार के संकल्प करके सिरी हरी विश्नो भगवान का स्मारन करके प्रार्थना करें कि ये तिर लोगपती मेरी लाज आपके हाथ में है अतय मुझे इस परण को पूरा करने की शक्ति परदान करें जादा सी जादा मोन जब सास्तर पठन, किर्तन, रात
पर नहीं पीने चाहिए जैसे cold drinks, acid आदी डाले हुए तथा दिबे बंद फलों का रस भी नहीं पीना चाहिए और इस दिन अन्गरहन नहीं करना चाहिए इस दिन आप वर्त रखें या ना रखें घर का कोई भी सदस्य चावल ना खाएं इस चीज का विशेष तोर से ध्या
दस्मी, एकादशी और दवादशी इन तीन दिनों में कांसे के बर्तन में मास मदीरा, प्याज, लशुन, मसूर, उर्द, चने, साक, सहैद, तेल और अधिक जल का परियोग नहीं करना चाहिए
वर्त के पहले दिन यानि की दवादशी को और दूसरे दिन यानि की दवादशी को
बादाम, पिस्ता, इतियादी अमरित फलों का सेमन करना चाहिए
जुआ खेलना, जादा निद्रा लेना, पान, पराई निंदा करना, जुबली करना, चोरी करना, हिसा, मेथुन, क्रोध, जूट, कपट आदि
इन सब गुकरमों से दूर रहना चाहिए और शांत रहना चाहिए और बैल की पीट पर बैट कर सवारी नहीं करनी चाहिए
अगर बैल गाड़ी है तो इन दिनों में बैल गाड़ी पर भी नहीं चड़ना चाहिए
और भूल वस्त किसी निंदक से बात हो जाती है तो इस दोस को दूर करने के लिए
बगवान सुरे के दर्शन तथा धूप दीप से सिरी हरी की पूजा करके छमा मागनी चाहिए
एका दसी के दिन घर में जाड़ू नहीं लगानी चाहिए इससे चिंटी यादी सुक्षम जीवों की मिर्त्यू का भिया रहता है
इस दिन बाल भी नहीं कटवाने चाहिए मदूर बासा बोलनी चाहिए और ज्यादा नहीं बोलना चाहिए
क्योंकि अधिक बोलने से ना बोलने वाले वजन भी निकल जाती हैं
इस दिन सक्त्य बासा का परियोग करना चाहिए और कम से कम बोलना चाहिए
इस दिन यथा शक्ति अन दान करना चाहिए किंतु स्वयं किसी का दिया हुआ अन कदापी गरहन ना करें
परतेक वस्तु परभू को भूग लगा कर तथा तुलसी दल छोड़ कर करहन करनी चाहिए
क्योंकि एकादसी के दिन शिरी हरी विश्णू को तुलसी दल का भूग लगाना जरूरी होता है
इसके बिना हमारा कोई भी भूग पूरा नहीं माना जाता है
लेकिन हम श्वेम एकादसी के दिन तुलसी नहीं ले सकती है
एकादसी के दिन किसी समन्दी की मिर्टी हो जाती है
तो उस दिन वर्त रख कर उसका फल संकल्ब करके उस मर्त्यक को दे देना चाहिए
और जब उसकी अस्तियां गंगाजी में परवाहित की जाती है
तो एकादसी वर्त रखकर उसका फल भी उस प्राणी के निमित कर देना चाहिए।
प्राणी मातर को अंतरियामी का अवतार समझकर किसी से छल कपट नहीं करना चाहिए।
अपना अपमान करने या कटू वचन बूलने वाले पर भूल कर भी इस दिन हमें क्रोध नहीं करना चाहिए।
क्योंकि उसे अपने कर्मों की सजा भगवान देती हैं तो हम बीच में पढ़ने वाले कौन होते हैं।
यह सोचकर सदेव चुप रहना चाहिए।
संतोष का फल सर्वदा मधुर होता है।
मन में सभी के परती दया भाव रखना चाहिए।
इस विदी से वर्थ करने वाला उत्तम फल को प्राप्त करता है।
और फिर द्वादशी के लिए सिरी हरी विश्णू और तुलसी माता के विदीवत पूजा करके ब्राहमनों को भोजन कराना जाएं।
भोजन करवाएं तो अपनी चहरे पर मुस्कान रखें।
और बाद में यथा संभव दान दक्षिना देकर परसंचित मन से ब्राहमनों को विदा करना जाएं।
और फिर स्वेम वर्थ का पारण करें।
द्वादशी को सेवा पूजा की जगह बैट कर, मिठे चावलों से वर्थ का पारण करना चाहिए।
किसी कारण वर्ष अगर आप चावल नहीं बना सकती हैं तो साथ दाने चावल के लिए कर।
उसके चोदे टुकडे करके अपने सिर्फ के पिछे फैंकना चाहिए और साथ ही इस परकार प्राखना करनी चाहिए कि मेरे साथ जन्मों के सारीरी, वाचिक और मानसिक पाप नष्ट हुए।
यह बावना करके साथ अंजली जल पिए और फिर साथ दाने चावल के खाकर वर्थ का पारण करना चाहिए।
एकाधसी का वर्थ हेमंत रितु में मारक्षिश मास के कृषिन पक्स को करना चाहिए।
इसकी कथा इस परकार है कि युदिष्टर ने भगवान श्री कृषिन से पूछा कि भगवान पुन्य में एकाधसी की तिथी उपन कैसे हुए, इस संसार में वहे क्यों पवित्र मानी गई, तथा देवताओं को पिरिय कैसे हुए।
तो श्री भगवान जी बोले कि एक उन्ती नंदन प्राजीन समय की बात में सत्युग में मुर नामक एक दानव रहता था।
वहे दानव बहुती अद्बूत, अत्यंत रोधर तथा संपुर्ण देवताओं के लिए बहुत भ्यांकर था।
उसका काल रुपधारी दुरात्मा महासुर ने इंदर को भी प्राजित कर दिया।
संपुर्ण देवता उससे प्रास्त होकर स्वर्ग से निकाले जा चुने थे और संकित तथा भ्याबीत होकर पृत्वी पर विचर रहे थे।
एक दिन सब देवता महादेव जी के पास गए। वहाँ जाकर इंदर ने भगवान शिव के अगे सारा हाल कह सुनाए।
इंदर बोले कि महेस्वर ये देवता स्वर्ग लोग से निकाले जाने के बाद पृत्वी पर विचर रहे हैं।
मनुष्यों के बीच में इस तरहें से विचरना सोबा नहीं देता।
हे महादेव आप ही कोई उपाय बतलाइए। ये देवता अब किसका सहरा ले।
तो महादेव जी ने कहा कि देवराज जहां सबको सरण देने वाले। सबकी रक्षामी तत्पर रहने वाले।
जगत के स्वामी भगवान गरुण ध्वज विराजमान है। तुम लोग वहाँ जाओ। वे ही तुम लोगों की रक्षा करें।
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि युदिष्ट्र जी महादेव जी की बात सुनकर परम बुद्धिमान देवराज इंदर संपूर्ण देवताओं के साथ छीर सागर में गए।
जहां भगवान गदाधर सो रहे थे तो इंदर ने वहाँ जाकर हाथ जोड़कर उनकी स्तूती की और बोले कि हे देव देवेश्वर्थ आपको नमस्कार है।
जहां भगवान गदाधर सो रहे थे तो इंदर ने वहाँ जाकर हाथ जोड़कर उनकी स्तूती की और बोले कि हे देव देवेश्वर्थ आपको नमस्कार है।
जहां भगवान गदाधर सो रहे थे तो इंदर ने वहाँ जाकर हाथ जोड़कर उनकी स्तूती की और बोले कि हे देव देवेश्वर्थ आपको नमस्कार है।
जहां भगवान गदाधर सो रहे थे तो इंदर ने वहाँ जाकर है।
जहां भगवान गदाधर सो रहे थे तो इंदर ने वहाँ जाकर है।
देवताओं को तो उसने परतेक को अपने अपने स्थान से वंचित कर दिया है।
तो इंदर की यहाँ बात सुनकर भगवान श्री हरिविश्णू को बड़ा ही गुस्सा आया।
उन्होंने देवताओं को साथ लेकर चंद्रावती नगरी में प्रवेश किया।
बगवान गदादर ने देखा कि देत्यराज बारं बार गर्जना कर रही है।
और उससे प्रास्त होकर संपुर्ण देवता दसों दिशाओं में भाग रही है।
अब वह दानव बगवान विश्णू को देख कर बोला कि खड़ा रहे, खड़ा रहे।
उसके यह ललकार सुनकर बगवान विश्णू के नेतर क्रोध से लाल हो गए।
वे बोले कि अरे दुष्ट दुराचारी दानव मेरे इन भुजाओं को देख।
यह कहे कर बगवान श्री हरी विश्णू ने अपने दिव्य बाणों से सामने आए दुष्ट दानवों को मारना सुरू कर दिया।
तो दानव भैसें भैबीत हो उठे।
हे पांडू नंदन तत पस्चार श्री हरी विश्णू ने देत्य सेन्ना पर चक्कर का परहार किया।
तो उस परहार से छिन बिन होकर सेंकणों योदा मोद के मुख में चले गए।
इसके बाद बगवान मदू सुधन बद्रिका धाम को चले गए।
वहाँ सिहावती नाम की एक गुफा थी जो बारा योजन लंबी थी।
हे पांडू नंदन उस गुफा में एक ही दरवाजा था।
बगवान विश्णू उसी में सो गए।
वह है मुर्देत्य, बगवान को मार डालने के उदेशय से उनके पीछे पीछे तो लगा ही था।
तो उसने भी गुफा में परवेश कर लिया।
वहाँ बगवान को सोते हुए देखकर उसे बड़ा ही हर्ष हुआ।
उसने सोचा कि यह दानवों को भ्याद देने वाला देवता है, इसलिए कोई संदेन नहीं, आज मैं इसे मार डालूबा।
दानवों के इस परकार विचार करते ही, बगवान विश्णू के सरीर से एक कन्या परकट हुई।
जो बड़ी हिरुपवती, सोभाग्य सालिनी तथा दिव्य अस्तर सस्त्रों से सुसूबित थी, वह बगवान श्री हर्ष विश्णू के तेज के अंस से उपन हुई थी।
उसका बल पुरु प्राक्रम महान था, तो देत्य मुर्ण ने उस कन्या को देखा। कन्या निवियुद्ध का विचार करके, दानव के साथ युद्ध के लिए याच्णा की।
कि मेरा यह स्थ्रु अत्यंत उगर और ब्यांकर था।
इसका वद किसने कर दिया।
तो वहे कन्या बोली कि हे स्वामिन आपके ही परसार्थ से मैंने इस महादित्य का वद किया है।
तो श्री भगवान जी ने कहा कि कल्याणी तुम्हारे इस करम से तीनों लोकों के मुनी और देवता आनंदित हुई हैं।
अतय तुम्हारे मन में जैसे भी इच्छा हो उसके अनुसार मुझसे कोई वर मांग लो।
देव दुर्लब होने पर भी वह वर्दान मैं पूरा करूँगा। इसमें कोई संदेह नहीं है। नी संकुच करूँ।
आज के दिन उपवास करेंगे। उन्हें सब परकार की सिद्धी प्राप्त हो।
हे माधव जो लोग उपवास बिना भोजन के अथवा एक वक्त भोजन करहन करके मेरे वर्द का पालन करें। उन्हें आप धन, धरम और मुक्ष परदान करें।
परम दयालू बगवान श्री हरी नारायण बोले की कल्यानी। तुम जो कहती हो वह सब पूर्ण होगा। और आज एकादसी तिथी है तो तुम एकादसी माता ए नाम से जानी जाओगी।
तो ऐसा वर्दान पाकर महावर्ता एकादसी बहुती परशल होई। दोनों पक्षों की एकादसी समान रूप से कल्यान वाली होती है। इसमें सुकल और कृष्ण का भेद कभी नहीं करना चाहिए।
यदि उद्यकाल में थोड़ी सी भी एकादसी मध्या में पूरी दूआदसी और अंत में किन्छित त्रियोदसी हो तो वह त्रीस परसा एकादसी कहलाती है। ऐसी एकादसी भगवान को बहुती प्रियह होती है।
यदि एक त्रिस परसा एकदसी का उपवास कर लिया जाए तो एक हजार एकदसी वर्तों का फल प्राप्त होता है। इस परकार द्वादसी में पारण करने पर हजार गुना फल माना गया है। आश्टमी एकदसी, सश्टी तृत्या और चतुर्दसी।
ये तिथि पुरुः तिथि से विद्ध हो तो इनमें वर्त नहीं करना चाहिए।
परिवृतनी तिथि से युक्त होने पर ही इनमें उपवास का विद्धान हो।
पहले दिन में और रात में भी एकादशी हो
तथा दूसरे दिन केवल प्राते काल एक दंड एकादशी भी रहे
तो पहली दिधी का प्रित्याग करके
दूसरे दिन की दूआदशी युक्त एकादशी को ही उपवास करना चाहिए
यह विदि मैंने दोनों पक्षों की एकादसी के लिए बताई है। जो मनुष्य एकादसी को उपवास करता है, वह वेकुंट धाम को जाता है।
जहां साक्ष्यात भगवान गुरुण ध्वच विराजमान रहते हैं। जो भग्द हर समय एकादसी के महतम्य का पाठ करता है, उसे हजार गव दान पुन्य खलों की प्राप्ती होती है।
जो कोई भग्द दिन या रात में भक्ति पूर्वक इस महतम्य को सुनते हैं या पढ़ते हैं, वे नी संदिहे ब्रह्म हत्या आधी पापों से मुक्त हो जाते हैं। एकादसी के समान पाप नाशक वर्थ कोई दूसरा नहीं है।
आप अपने सुनेंगे लपसी और तपसी की कहानी। इस कहानी को हर वर्थ कथा के बाद में जरूर सुनना चाहिए। इस कथा को सुने विना हमें हमारे वर्थ और पूजा पाठ का पुन्य भल नहीं मिलता है। एक लपसी था, एक तपसी था। तपसी हमेशा भगवान की �
तपस्या में लेन रहता था। लपसी रोजाना सवा सेर की लापसी बनाकर भगवान को भूग लगाकर बोजन कर लिया करता था। एक दिन किसी बात को लेकर उन दोनों में कहा सुनी हो गई और दोनों जोर-जोर से लड़ने लगे। तपसी कहने लगा कि मैं तो रोजाना �
बगवान की तपस्या करता हूँ, इसी लिए मैं बड़ा हूँ, तो लब्सी कहने लगा कि मैं रोजाना बगवान को
सवा सेर की लापसी का भूग लगाता हूँ, इसी लिए मैं बड़ा हूँ, इस तरहें कहते हुए वो दोनों
जोर जोर से लड़ने लगे
तभी वहां से नारजी गुजर रहे थे
दोनों को लड़ता हुआ देखकर वहां आ गए
और उनसे पूछने लगे कि तुम दोनों लड़ क्यों रही हो
तो तपसी ने खुद को बड़ा होनी का कारण बताया
और लपसी ने अपनी बड़े होनी का कारण बताया
और कहने लगे कि अब आप ही हमारा फैंसला कर दो
तो नारजी कहने लगे कि मैं तुम्हारा फैंसला तो कर दूँगा
लेकिन कल आउंगा तुम दोनों तैयार रहेणा
दूसरे दिन लपसी और तपसी नहा दो कर अपनी रोजाना की बक्ती करने आई
तो नारची वहाँ पर छुप कर बैठे थे और उन्होंने सोने की एक एक अंगुठी उन दोनों के आगे रख दी
तपसी की नजर जब अंगुठी पर पड़ी तो उसने छुप चाप अंगुठी को उठाया और अपनी पैर के नीचे दबा ली
लपसी की नजर उस अंगुठी पर पड़ी लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया
उसने रोजाना की तरहें लापसी बनाई और भगवान को भोग लगाया
फिर स्वयं बोजन करनी लगा
तो नारजी उन दोनों की सामने आ गई
तो देखते ही दोनों कहनी लगे
कि अब बताओ हम में से कौन बड़ा है
तो नारजी कहनी लगे
कि लपसी ही बड़ा है
तो यहे सुनकर तपसी को बड़ा ही अस्चरिय हुआ
और वो कहनी लगा
कि मैं कितनी कठिन तपस्या करता हूँ
फिर भी आप कहे रही है
कि लपसी बड़ा है
तो नारजी नी कहा
कि तुम अपनी स्थान से खड़े हो जाओ
तो वो खड़ा हुआ
तो उसकी पैर के नीचे अंगुठी दिखाई बड़ी
तो नारजी तपसी से कहने लगा
कि तपस्या करने के बाद भी
तुम्हारी चोरी करने की आदत नहीं गई है
इसलिए लपसी बड़ा है
क्योंकि मैंने ही
तुम दोनों के आगे सोने की एक एक अंगुठी रखी थी
तो तुमने तो देखते ही
अंगुठी को उठाया
और अपने पैर के नीचे दबा लिया
लपसी ने अंगुठी को देख कर भी
अंदेखा कर दिया
इसका अपनी रोजाना की वक्ति में द्यान था
इसने लपसी बनाई
और भगवान को भोग लगया
इसलिए लपसी ही बड़ा हुआ
और तुम्हें तुम्हारे इतनी कठिन तपस्या का
कोई फल नहीं मिलेगा
तो यहे सुनकर
तपसी को अपने किये पर बड़ा ही पस्तावा हुआ
और सर्मिंदा होकर
नारध जी से माफी माँगने लगा
कहने लगा कि महराज
मुझे गलती हो गई
आज से मैं कभी भी चोरी नहीं करूँगा
तुम मुझे बताओ
कि मुझे मेरी तपस्या का फल कैसे मिलेगा
मैंने तपस्या बड़ी ही
सर्दा भाव से की है
तो तबसी की बात सुनकर नारजी कहने लगे कि यदि घर पर सारी रोटी बनाकर गाई और कुट्टे की रोटी नहीं बनाएगा तो वह फल तुझे ही मिलेगा अगर कोई दिये से दिया जलाएगा तो उसका फल भी तुमें ही मिलेगा कोई ब्राह्मन को बोजन करवा कर उसे �
दक्षिना नहीं देगा तो उसका फल भी तुझे ही मिलेगा अगर कोई बेहन सुआस्णी को तीवल सूट हम बेहन सवरूप देते हैं उसके साथ अगर उपर नहीं देंगे तो उसका फल भी तुझे ही मिलेगा और वर्थ कथा में अगर कोई सारी कहनी सुन लें लेकिन त�
में ना सुने तो उस वर्ग का अभारत भी तुझे ही मिलेगा तो यह सुनकर तब से बहुत ही खुश हुआ और उसके बाद
कभी भी चोरी ना करने का परण लिया कहा जाता है कि उसी दिन से हर वर्ग तथा के बाद में लपसी तपसी की
कही और सुनिजाती है. कहानी समापत होते ही बोलना चाहिए कि लपसी का फल लपसी को मिले तपसी का फल तपसी को मिले हमारी कहानी का हमारे वर्त का और हमारे पूजबाट का फल हमें मिले.

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Aghan Purnima Vrat Katha
🎧 : 0 | ⏱: 29:47
🧑: Kanchan

Laila O Laila (From "Qurbani")
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🧑: Kanchan, Amit Kumar

Satyanarayan Ki Vrat Katha
🎧 : 0 | ⏱: 21:12
🧑: Kanchan