Pradosh Vrat Ki Katha
🧑🎤: Devesh Kundan
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📂: Thể Loại Khác
⏱: 00:00:00 AM 15/11/2025
ओम् नमस्चिवाय
प्रिये भाँक्ति जनों
आज मैं आपको
प्रदोश वर्त की पावन कथा
सुनाने जा रहा हूँ इस वर्त की महिमा क्या है और इसको
करने से क्या फल प्रागत होता है इसे जानने के लिए
इस कथा का ध्यान पुर्वक श्रवन करें हर हर महाधेव
हम प्रदोश वर्त की भक्तों आपको कथा सुनाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
इस वर्त में शिर्गोरा दोनों पूजे जाते हैं हम कथा सुनाते हैं
हम प्रदोश वर्त की आज आपको कथा सुनाते हैं आपको कथा सुनाते हैं
इस वर्त में शिर्गोरा दोनों पूजे जाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये प्रदोश वर्त है महाँ करे शिवशंकर कल्यान
करे शिवशंकर कल्यान ये प्रदोश वर्त है महाँ
करे वैसे ही दो प्रदोश वर्त की तित्हियां होती हैं
दो तित्हियां होती हैं हिंदु धर्म में एकादशी दिन हरी को ध्याते हैं
वैसे ही प्रदोश वर्त में शिव के बुन गाते हैं
शिव के बुन गाते हैं चंद्रदोश इस वर्त को करने से मिट जाता है
वर्त के पुन्निस जीवन का हर पल हर शाता है
हर पल हर शाता है
जो भी भट इस वर्त को भटों शदास करते हैं
भोले नाथ जी अपने भटों पर कृपा लुटाते हैं
भटों पर कृपा लुटाते हैं
क्या है विदी इस वर्त की आपको ये बतलाते हैं
पावन कथा सुनाते हैं इस वर्त में शिर्गोरा
दोनों पूजे जाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये प्रदोशिवत है महार कर शिवशंकर कल्यार
कर शिवशंकर कल्यार ये प्रदोशिवत है महार
भक्त जणों हर वर्त को करने की अलग-अलग विनिया होती हैं
साथ ही उनके अलग-अलग नियम भी होते हैं
नियम पूरी निष्ठा से किया जाने वाला वर्त आवस सफल होता है
प्रदोश वर्त के दिन सुबह को जल्दी उठना चाहिए
अम्रित वेला में भक्तों असनान को करना चाहिए
असनान को करना चाहिए
पूजा अस्थल की सुबह को कर ले घर की सफाई
गाई के गोबर से मंडप टी करते फिर लिपाई
करते फिर लिपाई
श्वेत वस्त्रों को भक्तों फिर सब धारन करते हैं
पाच रंगो की रंगोली से मंडप सजते हैं
मंडप सजते हैं
श्वेत पुष्प और चंदन गृत से ठाल सजाते हैं
श्वेत मिठाई बेल पत्र धथूरा भांग मंगाते हैं
धूप वस्त्र सब चड़ा के गृत का तीप जलाते हैं पावन कता सुनाते
हैं इस उरत में शिव गोरा दोनों पूजे जाते हैं हम कता सुनाते हैं
ये प्रदोशिवत है महार कर शिवशंकर कल्यार
कर शिवशंकर कल्यार ये प्रदोशिवत है महार
भक्त जिनों इस वरत को करने के लिए किस दिशा में अपना मुख रखना होता
है तथा अन्य और क्या नियम हैं आईये कथा के माध्यम से जानते हैं
उत्तर पुर्व दिशा में मुख कर शिव का ध्यान
करें पूजा पाथ और आरती कर शिव का गुण गान करें
वरत दिवस को कोई अन्म ना फिर खाना चाहिए
हारे मुंग या फल हार ही भक्त को करना चाहिए
ग्रहर दोश मिट जाते घर में खुशिया चाती हैं
अन्धन घर आता कलिया आंगन में खिल जाती हैं
शिव शंकर का ऊजन अतिफल दाई बतलाया
मन की मनशा पूरी होती जिसने भी शिव को ध्याया
एक कथा है पौरानिक जिसको हम गाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
इस वरत में शिव गोरा दोनों पूजे जाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये प्रदोषिवत है महार कर शिव शंकर कर यार
ये प्रदोषिवत है महार
प्रतेक वरत कथा के साथ कोई न कोई कहानी अवश्य ही जुड़ी होती है
इस वरत की कथा को दोनों हाथों को जोर
यदि कोई स्वधा भाव से श्रवन करता है
पुन्ने का भागी वनता है
एक नगर में एक पुजारी का रहता परिवार
मांग मांग कर पेट थबरते चाहे कोई हो वार
चाहे कोई हो वार
पता नहीं है मृत्यू समय जाने कब आ जाए
मोह माया के चलते मानव इसको जान न पाए
एक दिवस फिर तो पुजारी का आया है काल
पत्नी और फिर पुत्र का भक्तों हुआ हाल बेहाल
फिर तो पुजार इन पुत्र को लेकर घर घर जाती है
मांग के भिक्षा पेट गुजारानित कर पाती है
आगे क्या होता है भक्तों वो बतलाते हैं आपको कथा सुनाते हैं
इस वरत में शिव गौरा दोनों पूजे जाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये प्रदोशिवत है महार कर शिवशंकर कर्यार
कर शिवशंकर कर्यार ये प्रदोशिवत है महार
भक्त जनों उस पुजारन पर तो जैसे दुखों का पहार तूट पड़ा दरदर
भटकती उस अवलाने क्या किया आईए सुनते हैं कथा के माध्यम से
एक बार भी धर्वदेश का राज कुमार आया
छीन लिया दुश्टों ने राज और उसको मार भगाया
पिता के मुत्यू के बाद वो भटक रहा दरदर
एक पुजारन को मिला फिर उसके घर में जाकर
देख दशा पुजारन उसको अपने घर में लाई
अपने पुत्र के जैसा उसको भी है अपनाई
दोनों सुतों को लेके पुजारन रिशी आश्रम आई
शांडिल निरिशी ने प्रदोस व्रत की गाथा बतलाई
व्रत की गाथा बतलाई
क्या है व्रत की विधी वो रिशीवर सब समझाते हैं
आपको कता सुनाते हैं
इस व्रत में शिव गौरा दोनों पूजे जाते हैं
हम कता सुनाते हैं
ये प्रदोस व्रत है महाँ
कर शिव शंकर कल्याँ
शांडल रिशी से वो पुजारन भागवान शिर के
प्रदोस व्रत की सारी विधी को जानती हैं
और जाकर उसे नियम पुरुवक अपने घर पर अपने दोनों पुत्रों के साथ करती हैं
इधर वो दोनों पुत्र वन में घूमने चली जाते हैं
लेकिन दोनों में से एक ही वापस लगता है
आखिर क्यों आईए जानते हैं
कथा सुनी और विधी समझ वो घर पर आई हैं
प्रदोस व्रत को किर तो पुजारन ने अपनाई हैं
दोनों पुत्र तो वन में घूमने जाते हैं
सुबह से लेकर शाम तलक वो वही बिताते हैं
पुत्र पुजार निका लोटकर घर आजाता हैं
किन्टु राज का पुत्र वही वन में रह जाता है
गंधरव कन्य अन्शूमत को उसने वहाँ पाया
करने लगा बाते वो घर देरी से थिर आया
दूसर दिन भी राज कुमार वही पर जाते हैं
पावन कथा सनाते हैं
इस वरत में शिव गवरा दोनों पूजे जाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये प्रदोषिव वरत है महार कर शिव शंकर कल्यार
कर शिव शंकर कल्यार ये प्रदोषिव वरत है महार
एक दिन राज कुमार गंधर्व कन्या अन्शोमती
के साथ जब वन में भरवन कर रहे थे
तबही अन्शोमती के माता पिता ने राज कुमार को पहचान लिया
अन्शोमती को माता पिता संग उसने देख लिया
माता पिता ने राज कुमार को है पहचान लिया
है पहचान लिया
बोले पिता वे धर्व देश की राजा के संतान
राज कुमार हो तुम तो तुमारा धर्म गुप्त है ना
तुमारा धर्म गुप्त है ना
धर्म गुप्त तो माता पिता के मन को है भाया
मेरी सुता से कर लो शादी उसको बतलाया
शिव की कृपा से दोनों की है शादी करवाई
धर्म गुप्त को पाकर अन्शूमती है हर शाई
सेना लेकर राज कुमार भी धर्व को जाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
इस वरत में शिव गोवरा दोनों पूजे जाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये प्रदोषिवत है महार कर शिव शंकर करियार
कर शिव शंकर करियार ये प्रदोषिवत है महार
धर्व को दुष्टों से है छीन लिया फिर तो राज कुमार वहाँ
पर रहने लगता है प्रेम पूरवक राज पराजजिव करने लगता है
एक दिन धर्म गुप्त पुजारन के घर आया है
आटर और सम्मान से राज महल में लाया है
फिर तो पुजारन की दर्द्रत सारी दूर हुई
प्रदोषिवत के पुन्य से सारी मनशा पुर्ण हुई
किया था वरत सबने तो वो सब सुख को पाते हैं शिव की कृपा वो पाते
हैं इस वरत में शिव गोरा दोनों पूजे जाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये प्रदोषिवत है महार कर शिव शंकर कल्यार ये प्रदोषिवत है महार
राजकुमार ने जब अपना राज प्राप्त कर लिया तो अपने कर्तब्यों
का बोध हुआ और उसने उस पुजारण के घर जाने का निश्चे किया
और उनके घर जाकर सम्मान पुर्वक महल में लेकर आया
लेकिन जब वो महल में उन्हें लेकर आया
तो अन्शुमती के मन में एक ही प्रश्न बार-बार ये उठता रहा
कि आखर ये पुजारण कौन है जिसे राजकुमार ने इतना महत्व दिया हुआ है
एक दिन पत्नी अन्शुमती ने पती से पूच लिया
कौन पुजारण है ये उसने पती से प्रश्न किया
धर्म गुप्त ने अन्शुमती को सब बतलाया है पिता
के मिर्त्यों कैसे हुई वो दिश्च बताया है
धरधर भटका तब ये पुजारण बनी सहाई थी
जनम दात्रि के बाद तो ये ही मेरी माई थी
प्रदोस व्रत की विधी तो हमने रिशिवर से पाई थी
हम सब ने तो प्रदोस व्रत की विधी अपनाई थी
प्रदोस व्रत की विधी अपनाई थी
कृपा करी शिव भोलेनाथ हम राज को पाते हैं
अपने राज को पाते हैं इस व्रत में शिव गोरा दोनों पूजे जाते हैं
हम कथां सुनाते हैं ये प्रदोस व्रत है महाँ
करे शिव शंकर कईयार
ये प्रदोस व्रत है महाँ
संपुर्ण सुरिश्टी में अगर कोई कुछ देने लाइक है
वो शिव और शक्ती ही हैं
अतः व्यक्ति को चाहिए कि वो संसार के ही नहीं बलके श्रिश्टी के मूल
माता पिता आर्थात आध्या प्रकर्ती स्वरूपा जगज़रणी जगधमबा के साथ देविश्वर
सुमिष्वर परमपिता परमिश्वर देव आधिदेव महादेव की पूजा आवश्य करें
उससे मुक्ती पाकर सरवस्य सुखों को भोग कर
शिवतत्तु को प्राप्त होता है हर हर महादेव
उस दिन से तो प्रदोस वरत ने ख्याती पाई हैं
अन्शुमती ने प्रदोस वरत विदि को अपनाई हैं
इश्ट्री और पुरुस दोनों ही रख सकते उपवास
फलदाई और उप्तम वरत ये जो है वरतों में खास
इस वरत के करने से रोग और दोश ना आते हैं
वरत के पुन्यस ग्रह दोस भी सब मिट जाते हैं
शिव की दया से मानव भक्तों मोक्ष को पाता
है एक नजर किरपा की हो नरभव तर जाता है
शिव ही शत्य है शिव ही सुन्दर लीला रचाते हैं भक्तों के मन को भाते हैं
इस वरत में शिव गोड़ा दोनों पूजे जाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये प्रदोषिवत है महार कर शिवशंकर कर्यार
स्विम्भू अरथार स्विम्अजन्मा
देविश्वर सोमिश्वर महादेव हैं
जो सभी के भगवान हैं
हर कन में व्यापत हैं
हर छण में व्यापत हैं
उनकी पूजा के लिए किसी विधान की आवशक्ता नहीं है
वो सारे विधान से परे हैं
जहां ज्यान अपने अज्यानता की ओर अगरसर होता है वहां शिव
है जहां ज्यान अपने असीम भंडार में समाप्त हो जाये वहां शिव
है जहां शक्तियां समाप्त हो जाये वहां शिव है जहां शक्ती
नहों वहां शिव है अरथार यत्र तत्र सरवतर शिव ही शिव है ह
वहां शिव है जहां जहां शक्तियां समाप्त हो जाये वहां शिव
है जहां शक्तियां समाप्त हो जाये वहां शिव है जहां शक्तियां
समाप्त हो जाये वहां शिव है जहां शक्तियां समाप्त हो जाये
वहां शिव है जहां शक्तियां समाप्त हो जाये वहां शिव है जहा
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